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इतिहास के इस अतीत से भारतवासियों को सबक लेना चाहिए : डॉ एस अकमल

1527 ईo में खानवा के युद्ध के बाद 1528 ईस्वी में महाराणा सांगा का स्वर्गवास हो गया 1534 ईस्वी में गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह ने चित्तौड़गढ़ पर आक्रमण कर दिया तब राजमाता कर्णावती ने मुगल बादशाह हुमायूं के पास राखी भेजी और सहायता के लिए मदद मांगी थी लेकिन यह राखी बादशाह हुमायूं तक काफी देर से पहुंची इस वजह से जब तक हुमायूं अपनी सेना के साथ मेवाड़ पहुंचे तब तक रानी कर्णावती ने जौहर कर लिया था और बहादुर शाह की विजय हो चुकी थी मुगल बादशाह हुमायूं ने गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह जो कि मुसलमान था उससे युद्ध किया और बहादुर शाह को परास्त कर राज्य को रानी कर्णावती के पुत्रों को सौंप दिया।
आप प्रश्न यह उठता है कि रानी कर्णावती जी ने मुगल बादशाह हुमायूं से ही मदद क्यों मांगी और किसी आसपास के हिंदू राजा से मदद क्यों नहीं मांगी मुगल बादशाह हुमायूं ने हिंदू महारानी कर्णावती की मदद क्यों किया। यह एक विचारणीय प्रश्न है रानी कर्णावती जी को यह पूर्ण विश्वास था कि मुगल बादशाह हुमायूं उनकी मदद अवश्य करेंगे तभी तो उन्होंने हुमायूं को राखी भेजी और उनसे मदद मांगी। इस्लाम धर्म के संस्थापक हजरत मोहम्मद साहब का हुक्म है यह मत देखो की जुल्म अन्याय अत्याचार किस पर हो रहा है वह कोई भी हो उसकी मदद करो और अन्याय अत्याचार को समाप्त करने के लिए संघर्ष युद्ध करो, अगर युद्ध करने में सक्षम नहीं हो तो जवान से बोलकर रोकने का प्रयास करो, अगर यह भी नहीं कर सकते तो दिल में बुरा समझो और समाज के लोगों को बताओ और सामाजिक समर्थन हासिल करके ताकत हासिल करो और उस ताकत का उपयोग और प्रयोग करके अन्याय की व्यवस्था को नष्ट करो चूंकि मुगल बादशाह हुमायूं मुसलमान था और मोहम्मद साहब के पैगाम से भली भांति परिचित था इसलिए उसने मोहम्मद साहब के संदेश का पालन करते हुए महारानी कर्णावती जी की मदद किया क्योंकि वह मजलूम थी और उनकी मदद करना हुमायूं ने अपना कर्तव्य समझा और गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह से युद्ध किया और विजय हासिल किया और उक्त राज को रानी कर्णावती के पुत्रों को सौंप दिया।
इस घटना के बाद हुमायूं की दिल्ली की हुकूमत चली गई। उस पर शेरशाह सूरी ने कब्जा कर लिया और मुगल बादशाह हुमायूं को ईरान भागना पड़ा और ईरान के बादशाह की मदद से हुमायूं ने एक बड़ी सेना तैयार किया और पुनः सन 1555 में युद्ध करके दिल्ली पर कब्जा कर पुनः अपने राज्य की स्थापना किया।
कल दिनांक 19 अगस्त 2024 को रक्षाबंधन का त्यौहार बड़े हर्षोउल्लास के साथ मनाया गया और देशवासियों ने मुबारकबाद बधाइयां दी। इस त्यौहार की खास बात यह है कि बहने अपने भाइयों की कलाई पर राखी बांधती है और भाई अपनी बहन की रक्षा करने का वचन देता है अगर इस त्यौहार के अवसर पर सभी बहनें अपने भाइयों से यह संकल्प लें जिस प्रकार से आप हमें अपनी बहन मानते हैं ठीक उसी प्रकार से समाज की देश की लड़कियों की भी बहन बेटी माने और उनकी रक्षा करें तो हमारे प्यारे देश से सामाजिक बुराइयां समाप्त हो जाएंगी।
इसलिए महामानव बाबा साहब डॉ भीमराव अंबेडकर का कहना है कि –
“विचारों में परिवर्तन हुए बगैर आचरण में परिवर्तन संभव नहीं है”
इसलिए देशवासियों के आचरण में परिवर्तन तब तक संभव नहीं है जब तक कि समाज के विचारों में परिवर्तन न हो कोई भी कानून बनाकर सामाजिक अपराध को रोका नहीं जा सकता इसलिए विचार परिवर्तन ही सभी परिवर्तनों का मूल है।
“भैया मेरे राखी के बंधन को निभाना” अतीत में भी और वर्तमान में भी इस बंधन को निभाएं बगैर समाज में भाईचारा बंधुता स्थापित नहीं हो सकता है जब तक भाईचारा, प्रेम, सद्भाव बंधुता की भावना देशवासियों के हृदय में नहीं होगा तो एक राष्ट्र की संकल्पना नहीं की जा सकती और हमारा देश एक मजबूत राष्ट्र और विश्व गुरु नहीं बन सकता है।

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