सिख सतगुरू राम सिंह जी को भगवान रामचंद्र जी का अवतार मानते हैं – सतगुरु दलीप सिंह जी
अयोध्या
नामधारी पंथ के संस्थापक, स्वतंत्रता संग्राम के आरंभक, महान क्रांतिकारी सतगुरु राम सिंह जी का प्रकाशोत्सव, नामधारी संगत ने अयोध्या में शोभा यात्रा निकाल कर राम मंदिर में दर्शन करके मनाया। क्योंकि, नामधारी सिख, सतगुरु राम सिंह जी को भगवान रामचन्द्र जी का ही रूप मानते हैं। इस अवसर पर सतगुरु राम सिंह जी के वंशज, वर्तमान नामधारी मुखी, सतगुरु दलीप सिंह जी ने संदेश के माध्यम से, गुरुवाणी के प्रमाण दे कर भगवान रामचंद्र जी तथा सिख गुरु साहिबान को एक ही रूप सिद्ध किया: “त्रेते सतिगुर राम जी रारा राम जपे सुख पावै” “तिन बेदीयन की कुल बिखै प्रगटे नानक राए”; इत्यादि पंक्तियों के आधार पर भगवान रामचंद्र जी हमारे ‘सतगुरु’ तथा सिख गुरु साहिबान के पूर्वज हैं। वर्तमान नामधारी सतगुरु जी ने बताया कि सतगुरु राम सिंह जी का आदेश है “सभी को विद्या दान दीजिए। क्योंकि, विद्या दान सर्वोत्तम दान है”। इस कारण, उन्होनें सभी से विनती की “सभी भारतीय प्रतिदिन आधे घंटे के लिए अपने अनपढ़ भाई, बहनों, बच्चों को पढ़ाना आरंभ कीजिए। ऐसा करने से, दो वर्ष में ही पूरा भारत वर्ष साक्षर हो जाएगा” । हरदीप सिंह ‘राजा’ ने बताया कि सतगुरु राम सिंह जी ने 1857 की वैसाखी पर खालसा पंथ की पुनर्स्थापना करके, सतगुरु गोबिन्द सिंह जी की शिक्षा दे कर; देश तथा धर्म की रक्षा की भावना को दृढ़ करवाया। गुरु जी ने 1857 के गदर से पहले ‘नामधारी सिख’ संप्रदाय (‘कूका आंदोलन’) की नींव रखी। गुरु जी ने सर्वप्रथम अंग्रेजी वस्तुओं का बहिष्कार किया, जिस की 50 साल बाद गांधी जी ने नकल की। तेजेन्दर सिंह ने बताया कि सतगुरु राम सिंह जी ने अंग्रेजी सरकार के समानांतर अपनी सरकार बनाई। नेपाल और कश्मीर में ‘कूका रेजीमेंट’ बना कर अंग्रेजों के विरुद्ध युद्ध की तैयारी की। अंग्रेजों को भारत से निकालने के लिए रूस के साथ संबंध स्थापित किए। गुरू जी की प्रेरणा से हजारों नामधारी सिखों ने देश की स्वतंत्रता हेतु महान बलिदान दिए। उन्होंने बताया कि सतगुरु राम सिंह जी ने सर्वप्रथम ऐसे सामाजिक-धार्मिक कार्य आरंभ किये, जो पूरे विश्व में पहले किसी ने भी नहीं किए थे। जैसे: विवाह के लिए न्यूनतम 18 वर्ष की आयु निर्धारित करके बाल विवाह बंद किए। स्त्रियों के सुख, सत्कार तथा सुरक्षा के लिए विधवा विवाह करवाना आवश्यक किया। सिख पंथ में पहली बार, जून 1863 को स्त्रियों को अमृत पान करवाया और आनंद कारज की मर्यादा आरंभ की। सादे सस्ते बिना किसी खर्च के, अन्तर्जातीय विवाह आरंभ करवाए। दहेज लेना-देना सख्ती से मना किया। लड़कियां बेचना, लड़कियां मारना सख्ती से बंद किया। माता हुकमी जी को ‘सूबा’ (गवर्नर) की पदवी दे कर; स्त्री जाति को समाज में उच्च स्थान दिया। वर्णन योग है: सिख जगत में से पूर्ण रूप से केवल नामधारी संप्रदाय (सतिगुरु दलीप सिंह जी के नेतृत्व वाला गुट) ही खुलकर राम मंदिर के समर्थन में आया है। सतगुरु दलीप सिंह जी बहुत वर्षों से प्रत्येक स्थान पर अपने भाषणों तथा वीडियो संदेश के माध्यम से खुल कर राम मंदिर का समर्थन कर रहे हैं। नामधारी सिख पिछले कई वर्षों से जन्म स्थान अयोध्या में आ कर ही रामनवमी मना रहे हैं। राम मंदिर उद्घघाटन के उपलक्ष्य में नामधारी सिखों ने अयोध्या में पिछले एक महीने से लंगर लगाया हुआ है और आगे भी लंगर चलता रहेगा। शोभा यात्रा दौरान पूज्य बिहारी दास जी, श्री महंत परशुराम दास जी एवं अन्य हिन्दू संतजन विशेष रूप से शामिल हुए तथा इन संतजनों ने भी सतगुरु राम सिंह जी की शोभा में कीर्तन किया। इस मौके पर सूबा अमरीक सिंह, सूबा रतन सिंह, मुख्तियार सिंह यू पी, जसवीर सिंह, रतनदीप सिंह, सुखराज सिंह, सिमरनजीत कौर, राजपाल कौर, शिखा सोनी, अंजली जैसवाल, बलविंदर कौर, दलजीत कौर, परमजीत कौर, नीना कौर आदि भी उपस्थित थे।